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जया एकादाशी 2025: जया एकदाशी पर इन उपायों से मुक्ति सीखें, भूत और नकारात्मक शक्तियों जैसी नकारात्मक शक्तियां।

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हिंदू पंचांग के अनुसार माघ मास शुक्ल पक्ष के ग्यारवें दिन जया एकादशी पर्व मनाया जाता है. बंगाल में इसे भैमी एकादशी के नाम से मनाया जाता है. इस दिन भगवान श्रीहरि के साथ देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है. मान्यता है कि साल के सभी कृष्ण एवं शुक्ल पक्ष की एकादशियों का व्रत रखने से जातक को मोक्ष की प्राप्ति होती है. आइये जानें इस वर्ष जया एकादशी का व्रत कब रखा जाएगा, और क्या है इसका महत्व, मुहूर्त, पूजा मंत्र एवं पूजा विधि इत्यादि…

जया एकादशी का महत्व:

माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी का व्रत रखा जाता है. इस दिन भगवान विष्णु के माधव स्वरूप की पूजा की जाती है. इस दिन व्रत एवं पूजा करने वाले श्रद्धालुओं को जाने-अनजाने हुए पापों से मुक्ति मिलती है, दिवंगत हो चुके पूर्वजों को मोक्ष दिलाता है. इसके अलावा यह यह व्रत जातकों को आध्यात्मिक मार्ग पर चलने और सुखमय जीवन प्राप्ति के लिए प्रेरित करता है. ज्योतिष शास्त्रियों के अनुसार इस व्रत करने से ब्रह्महत्या के पाप से भी छुटकारा दिलाता है. शास्त्रों के अनुसार, इस दिन उचित अनुष्ठानों के साथ व्रत रखने और ब्राह्मणों को भोजन कराने से जातक को भूत-प्रेत जैसे नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति भी मिलती है. यह भी पढ़ें : Ratha Saptami 2025 Wishes: रथ सप्तमी के इन शानदार हिंदी WhatsApp Messages, Quotes और HD Wallpapers भेजकर दें शुभकामनाएं

जया एकादशी की मूल तिथि एवं एवं पारण

मग शुक्ला पक्ष एकदाशी स्टार्ट: 09.26 PM (07 फरवरी 2025)

मग शुक्ला पक्ष एकदाशी समाप्त: 08.15 बजे (08 फरवरी 2025)

उदया तिथि के अनुसार जया एकादशी का व्रत एवं पूजा का आयोजन 8 फरवरी को रखा जाएगा.

पारण का समयः पंचांग के अनुसार, जया एकादशी का पारण 09 फरवरी 2025  07.04 AM से 09.17 PM के मध्य किया जा सकता है.

जया एकादशी शुभ मुहूर्त

ब्रह्मा मुहर्ट 05.21 पूर्वाह्न से 06.13 पूर्वाह्न

विजय मुहूर्त: 02.26 PM से 03.10 तक

जया एकदशी पूजा विधी

माघ मास की एकादशी को सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान-ध्यान कर सूर्योपासना करें. स्वच्छ वस्त्र धारणकर व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. इसके पश्चात पूजा स्थल के समक्ष चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर इस पर भगवान श्रीहरि एवं देवी लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें. उनके समक्ष धूप-दीप प्रज्वलित करें. अब श्रीहरि एवं लक्ष्मीजी का तिल से अभिषेक करें. पीले चंदन का तिलक लगाएं और पीला कनेर, तुलसी, बेसन के लड्‌डू, पीले वस्त्र आदि अर्पित करें. इस दिन तुलसी में जल नहीं चढ़ाना चाहिए. 14 मुखी दीपक जलाकर जया एकादशी की कथा सुनें. आरती के बाद भोजन, वस्त्र एवं तिल का दान करें. श्रीहरि की आरती उतारें. दोपहर में श्रीहरि का भजन करें. अगले दिन शुभ मुहूर्त पर पारण करें.


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